बच्चों की असेंबली, सहनशक्ति और हमारी भूमिका – Cool Blogger’s Diary

school assembly and children stamina. studyreach.in

बदलते समय में स्कूल असेंबली (school assembly) और बच्चों की सहनशक्ति

बहुत दिन बाद आज फिर मन हुआ डायरी के कुछ पन्नों में उन विचारों को उतार दूँ, जो सुबह की School Assembly देखकर दिल में गूंजने लगे।

स्कूल की Assembly—बस 10 से 15 मिनट की बात होती है। राष्ट्रगान, प्रेयर, समाचार, कभी-कभी कोई गतिविधि, और फिर सब अपने-अपने क्लास में। पर यही 10 मिनट आजकल बच्चों को भारी लगने लगे हैं।

आज देखा कि एक-एक करके चार-पाँच बच्चे अचानक बैठ गए, किसी को चक्कर आया, किसी का पेट दर्द, किसी को पसीना। ये क्या हो रहा है?

बचपन अब पहले जैसा क्यों नहीं रहा?”

याद आया वो समय, जब हम खुद स्कूल में (school assembly0 धूप में भी पूरे आधे घंटे तक बिना हिले-डुले असेंबली में खड़े रहते थे। आज की पीढ़ी क्यों नहीं कर पा रही?

असली वजहें क्या हैं?

  • सुबह का ब्रेकफास्ट गायब:
    कई पेरेंट्स कहते हैं बच्चा सुबह कुछ खाता ही नहीं। दूध पिला दिया, बस। लेकिन खाली पेट से खड़े रहना—क्या वो भी ठीक है?
  • टिफिन लाना ‘फैशन’ नहीं रहा:
    कुछ बच्चों के पास टिफिन नहीं होता। कुछ बस फास्ट फूड लेकर आते हैं। खाना है नहीं, बस कैंटीन में समोसे लेने की प्लानिंग।
  • फिजिकल स्टैमिना की कमी:
    Mobile, Games, टीवी और कम शारीरिक गतिविधि बच्चों की स्टैमिना (stamina) को खोखला कर रही है।

मेरा अनुभव

यह प्रैक्टिस खास तौर पर प्री-प्राइमरी बच्चों के साथ शुरू की गई थी। बात तब की है जब कुछ parents की शिकायत आई कि उनके बच्चे घर में खाना नहीं खाते, या सिर्फ एक-दो byte लेकर टाल देते हैं। कुछ तो मोबाइल में रील्स या कार्टून देखते हुए ही खाना खाते हैं।

लेकिन जब स्कूल में हमने उन्हें जूते उतारकर, दरी पर बैठाकर, सबके साथ टिफिन खोलकर बैठने की आदत डाली — तो चमत्कार हुआ।
जो बच्चे मम्मी को अपने आगे पीछे घूमते थे, बस एक बाइट” कहकर टालते थे, वही बच्चे अब पूरे मन से अपना टिफिन फिनिश करने लगे।

यह केवल बैठने का तरीका नहीं था, यह एक माहौल था — जहां बच्चे देख-देखकर सीखते हैं, और धीरे-धीरे वही आदतें उनकी दिनचर्या बन जाती हैं।
कभी-कभी छोटे प्रयास ही बड़ी आदतों की नींव बनते हैं।

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क्या यह सब रुक सकता है?

ज़रूर रुक सकता है, लेकिन सवाल यह है कि हम कहाँ चूक रहे हैं?

“School Assembly (असेंबली) में चक्कर क्यों आते हैं – एक सोचने वाली बात!”

हमें सोचना होगा कि सुबह बच्चों को कैसा ब्रेकफास्ट (breakfast) दें, जो ना तो ओवरडाइट (overdiet) हो और ना ही एसिडिटी (acidity-) जैसी परेशानियाँ खड़ी करे। कुछ पैरेंट्स सिर्फ एक गिलास दूध देकर बच्चों को स्कूल भेज देते हैं, जबकि कुछ ऐसे ब्रेकफास्ट करवा देते हैं जो सुबह के लिए उपयुक्त ही नहीं।

स्कूल की कैंटीन से खाना लेना बच्चों को पसंद आता है, पर हर दिन अगर बच्चा स्नैक्स (snacks) लेकर खा रहा है तो ज़िम्मेदारी किसकी है? क्या हफ्ते में एक या दो बार लिमिट limit तय नहीं की जानी चाहिए? और यह आदत किसने डाली कि रोज पैसे देकर कुछ न कुछ बाहर (canteen) से लेना ज़रूरी हो गया?

हमें उन्हें समय से पहले उठाकर, आराम से बैठाकर, पूरा ब्रेकफास्ट करवा कर भेजने की आदत डालनी होगी।
भागते-दौड़ते हुए नाश्ता अधूरा रह जाता है, या छूट ही जाता है — और वही बच्चा 10 मिनट की असेंबली में भी खड़ा नहीं रह पाता।

अब समय है अपने आप से सवाल पूछने का:

  • क्या हम सही आहार दे रहे हैं?
  • क्या हम उनकी स्टैमिना बढ़ाने पर ध्यान दे रहे हैं?
  • और क्या स्कूल और पैरेंट्स मिलकर एक मजबूत हेल्थ सिस्टम बना सकते हैं?

अगर हाँ, तो यकीन मानिए — यह सब रुक सकता है।

✍️ Cool Daddy की गुज़ारिश

डायरी लिखते वक्त कोई time pass नहीं चलता। मेरा मकसद केवल विचार साझा करना है। शायद हम सब कुछ महसूस कर सकें, कुछ बदल सकें।

आपसे गुज़ारिश है—अपना सुझाव ज़रूर दें। क्या ये समस्या सिर्फ स्कूल की है? या कहीं हम भी जिम्मेदार हैं?

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