आज सुबह ऑफिस जाते समय ट्रैफिक में फंसा था। अचानक दिमाग़ में ख्याल आया – “ज़िंदगी में कितने लोग सच में खुद पर काम करते हैं?” Acresia lets learn more…
ज़्यादातर लोग बस नौकरी, बिल, और रुटीन में ही उलझे रहते हैं। और वहीं मैंने महसूस किया – यही तो फर्क है 95% और 5% का।
95% और 5% – दो दुनिया
- 95% लोग बस जीते हैं।
रोटी-कपड़ा-मकान में उलझे, बिना सोचे कि “मैं कौन बन रहा हूँ?” - 5% लोग रोज़ खुद को नया बनाते हैं।
वो पढ़ते हैं, सीखते हैं, सोचते हैं और खुद को तराशते हैं।
सवाल साफ़ है – क्या मैं भीड़ में खोया हूँ या खुद को चमका रहा हूँ?
खुद पर काम करना = खुद को तराशना
अगर सोना बिना आग के चमकता, तो कोई सुनार की दुकान न होती।
लेकिन असली सोना बनने के लिए 16 आग की लपटों से गुजरना पड़ता है।
वैसे ही इंसान को भी तकलीफ़, मेहनत और बदलाव से गुजरना पड़ता है।
अगर बीच में रुक गए, तो अधूरा सोना बनकर रह जाओगे।
क्यों 95% कभी ऊपर नहीं उठ पाते?
क्योंकि:
- दर्द से डरते हैं।
- आराम से बाहर नहीं आना चाहते।
- “मुझे करना चाहिए” बोलते हैं, लेकिन करते नहीं।
लेकिन हक़ीक़त ये है – अगर खुद पर काम नहीं करोगे, तो दुनिया तुम्हें भुला देगी।
खुद पर काम करने के 5 रास्ते
- शरीर पर – सेहत और फिटनेस
- दिमाग़ पर – सीखना और नई सोच
- पैसे पर – सेविंग, इनकम, फाइनेंशियल फ़्रीडम
- रिश्तों पर – परिवार, दोस्ती, संवाद
- आत्मा पर – शांति, उद्देश्य और संतुलन
आज का वादा
मैं 95% में नहीं रहूँगा।
मैं रोज़ अपने शरीर, दिमाग़, पैसे, रिश्तों और आत्मा पर काम करूँगा।
शायद आसान नहीं होगा, लेकिन 5% में जगह बनाना कभी आसान नहीं होता।
डायरी से सीख
95% लोग जीते हैं मजबूरी से।
5% लोग जीते हैं अपनी शर्तों पर।
बस फ़र्क इतना है –
वो खुद पर रोज़ काम करते हैं।