
Bhagavad Gita – Chapter 1: Arjuna’s Dilemma अर्जुन की दुविधा
Shloka (Sanskrit):
धृतराष्ट्र उवाच |
धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः |
मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत सञ्जय || 1.1 ||Transliteration:
Dhritarashtra uvācha:
Dharmakṣetre Kurukṣetre samavetā yuyutsavaḥ
Māmakāḥ pāṇḍavāścaiva kim akurvata sañjaya || 1.1 ||Meaning:
Dhritarashtra asked:“O Sanjaya, what did my sons and the sons of Pandu do when they assembled on the holy battlefield of Kurukshetra, eager for battle?”
आज सुबह Cool Daddy ने भगवद गीता Bhagavad Gita खोली। Chapter 1 पढ़ते ही लगा कि जैसे यह उनकी ही ज़िंदगी की कहानी हो।
जैसे ही उन्होंने अपनी आंखें खोली, दिमाग़ में कामों की लंबी-लंबी सूची गूँजने लगी – School की मीटिंग की तैयारी, बच्चों का होमवर्क, और अपने नए प्रोजेक्ट की रूपरेखा। दिल कह रहा था – “थोड़ा आराम कर लो”, लेकिन दिमाग़ Confuse था – “अगर अभी नहीं उठे, तो दिन हाथ से निकल जाएगा।”
Cool Daddy को महसूस हुआ – यही तो अर्जुन भी महसूस कर रहा था कुरुक्षेत्र की रणभूमि में। अपने सामने अपने ही रिश्तेदार, मित्र और गुरु देख कर उसका मन डगमगा गया। उसने धनुष नीचे रख दिया और कहा –
“मैं यह युद्ध नहीं लड़ सकता। मेरा मन भ्रमित है, कर्तव्य समझ में नहीं आ रहा।”
सोचा – कि सबके साथ अक्सर ऐसा ही होता है?
- बच्चा जब बोर्ड परीक्षा का सिलेबस देखकर डरता है।
- एक पिता जब सोचता है कि सख़्त बनूँ या दोस्ताना।
- या जब जीवन के छोटे-बड़े फैसलों में हम हिचकिचाते हैं।
गीता का पहला सबक यही है –
भ्रम स्वाभाविक है, पर यह अंत नहीं, शुरुआत है।
👉 जब संदेह आता है, समझिए कि ज्ञान की राह शुरू होने वाली है।
👉 अर्जुन ने कृष्ण से मार्गदर्शन माँगा, हमें भी किसी ज्ञानी, गुरु, किताब या अनुभव से सीखना चाहिए।
👉 कठिनाइयों से भागने पर बोझ और भारी होता है। सामना करने से रास्ता खुलता है।
आज का विचार:
“भ्रम अंत नहीं है, यह ज्ञान की शुरुआत है।”
Cool Daddy ने चाय का पहला घूंट लिया और सोचा – उलझन अब डर नहीं, बल्कि मार्गदर्शन का संकेत है।
कल से गीता का दूसरा अध्याय शुरू करेंगे – जहाँ कृष्ण अर्जुन को कर्तव्य और संतुलन का महत्व सिखाते हैं। वहीं से असली ज्ञान का प्रवाह शुरू होता है।
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