Acresia से मुलाक़ात पहला दिन Cool Blogger’s Diary

सुबह की चाय अधूरी थी और मैं सोच रहा था – “आज तो मुझे वॉक पर जाना चाहिए।”

फिर अपने आप ही मुस्कुरा दिया।
क्योंकि अंदर से पता था – जाने वाला नहीं हूँ। ये “चाहिए” असल में एक मीठा सा झूठ था, जो मैं खुद को बोल रहा था। और तभी दिमाग़ में बिजली सी कौंधी – यही तो है Acresia

Acresia क्या है?

ये कोई मेडिकल बीमारी नहीं है, बल्कि दिमाग़ की बीमारी है।
इसका आसान मतलब:

Acresia = पता है क्या करना है, लेकिन करते नहीं।

बिलकुल वैसे ही जैसे मेरा बेटा कहता है – पापा, मुझे होमवर्क करना चाहिए…” और फिर क्रिकेट खेलने निकल जाता है।
और सच कहूँ तो, मैं भी यही करता हूँ। मुझे एक्सरसाइज करनी चाहिए, मुझे लिखना चाहिए, मुझे हेल्दी खाना चाहिए…” लेकिन मोबाइल स्क्रॉल कर लेता हूँ।

ये खामोश दुश्मन

Acresia धीरे-धीरे सपनों को मार देती है।
लाखों लोग इसी के चक्कर में औसत ज़िंदगी जीते रहते हैं।

सच ये है –
95% लोग पूरी उम्र सिर्फ “चाहिए चाहिए” बोलते रहते हैं।
और सिर्फ 5% लोग सच में काम करके आगे बढ़ते हैं।

तो आज मैंने खुद से सवाल किया – क्या मैं 95% वालों में हूँया 5% में आने की लड़ाई लड़ रहा हूँ?

चाहिएका धोखा

हर बार जब हम बोलते हैं – मुझे करना चाहिए…”
तो हम Acresia को और मज़बूत कर देते हैं।

  • “मुझे सुबह उठना चाहिए।” → अलार्म स्नूज़।
  • “मुझे हेल्दी खाना चाहिए।” → प्लेट में पकौड़े।
  • “मुझे डायरी लिखनी चाहिए।” → टीवी ऑन।

ये “चाहिए” दिमाग़ को धोखा देता है। लगता है जैसे हमने कुछ किया, लेकिन हक़ीक़त में कुछ नहीं किया।

इलाज सिर्फ़ एक – Action

Acresia की कोई दवा नहीं है।
इसका इलाज है – करना।

“चाहिए” को मिटाओ, और उसकी जगह बोलो – मैं कर रहा हूँ।

  • मत कहो मुझे चलना चाहिए। → कहो मैं अभी चल रहा हूँ।
  • मत कहो मुझे लिखना चाहिए। → कहो मैं लिख रहा हूँ।

आज का वादा

आज मैंने अपनी डायरी में लिखा है –
मैं कभी मुझे करना चाहिए नहीं बोलूँगा।
मैं सिर्फ़ बोलूँगा – मैं कर रहा हूँ।

क्योंकि अगर मैंने Acresia को आज नहीं हराया, तो ये मेरे कल को खा जाएगी।

डायरी से सीख

Acresia कोई शब्द नहीं, एक चेतावनी है।
ज़िंदगी को “चाहिए” के भरोसे मत जीना।

मत रुको। मत सोचो।
बस कर डालो।

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