करवा चौथ Karva Chauth – एक दिन, जो केवल उपवास नहीं बल्कि एहसास है
भारत में कुछ त्यौहार ऐसे होते हैं जो केवल पूजा-पाठ या रिवाज़ नहीं होते, बल्कि भावनाओं और रिश्तों की कहानी Story of emotions and realationsकहते हैं।
करवा चौथ उन्हीं में से एक है — एक दिन जब स्त्री का प्रेम, धैर्य और आस्था एक साथ झलकती है।
सुबह सूरज से पहले जब महिलाएँ सरगी खाती हैं और चाँद निकलने तक बिना पानी के उपवास रखती हैं, तो यह केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि प्यार की गहराई का प्रतीक है।
“करवा चौथ का व्रत सिर्फ चाँद को देखने का नहीं, रिश्ते को समझने का अवसर देता है।”
परंपरा का सार और इसका अर्थ
‘करवा’ यानी मिट्टी का घड़ा, और ‘चौथ’ यानी कृष्ण पक्ष की चौथ तिथि।
यह दिन कातिक माह Kartik में आता है और उत्तर भारत में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।
परंपरा कहती है कि इस दिन पत्नी अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है, लेकिन असल में यह विश्वास और प्रेम के अटूट बंधन का प्रतीक बन चुका है।
आज के समय में कई पुरुष भी अपनी पत्नी के साथ यह व्रत रखते हैं — शायद यही आधुनिक रिश्तों की खूबसूरती है।
रिवाज़ और तैयारी: परंपरा में छिपी सुंदरता
करवा चौथ की तैयारियाँ कई दिन पहले से शुरू हो जाती हैं —
नए कपड़े, मेंहदी, पूजा की थाली, सिन्दूर, बिंदी और वह उत्सुकता जो हर पत्नी के चेहरे पर झलकती है।
सुबह की सरगी:
माँ या सास द्वारा दिया गया सरगी का थाल — जिसमें मिठाइयाँ, फल, सूखे मेवे होते हैं — न सिर्फ भोजन है, बल्कि स्नेह का आशीर्वाद भी।
पूजा और कथा:
शाम होते ही महिलाएँ सजधज कर एकत्रित होती हैं, पूजा करती हैं और करवा चौथ की कथा सुनती हैं — जिसमें एक स्त्री की अटूट श्रद्धा और प्रेम से उसके पति का जीवन बचता है।
चाँद का दीदार:
रात को जब चाँद आसमान में मुस्कुराता है, तो वह पल हर जोड़े के लिए खास बन जाता है — पत्नी चलनी से चाँद को देखती है, फिर अपने पति को, और उसके हाथ से पहला जल ग्रहण करती है।
व्रत के साथ दिनभर की थकान जैसे पलभर में मिट जाती है।
पौराणिक कथा: विश्वास की शक्ति
कहते हैं कि रानी वीरवती का यह व्रत सबसे प्रसिद्ध है।
जब उन्हें झूठे चाँद के छल से व्रत तोड़ना पड़ा, उनके पति की मृत्यु हो गई — लेकिन उनकी अटूट श्रद्धा ने यमराज को भी झुका दिया और उनके पति को जीवनदान मिला।
यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची निष्ठा और प्रेम कभी व्यर्थ नहीं जाते।

आधुनिक समय में करवा चौथ का बदलता रूप
आज के युग में करवा चौथ केवल महिलाओं का व्रत नहीं रहा।
कई जगह पति-पत्नी दोनों साथ उपवास रखते हैं — यह प्रेम में समानता और साझेदारी की नई मिसाल है।
ऑफिस की मीटिंग्स, स्कूल की ड्यूटी या बच्चों की जिम्मेदारियों के बीच भी महिलाएँ इस व्रत को पूरी श्रद्धा से निभाती हैं — यह दर्शाता है कि परंपरा और प्रगति साथ चल सकती हैं।
“आज की नारी सिर्फ निभाती नहीं, समझाती भी है — परंपरा का असली अर्थ।”
English Verson :
Karwa Chauth 2025: The Festival of Love, Faith, & Togetherness
“Tradition becomes powerful when it adapts with love — that’s what Karwa Chauth truly teaches us.”

एक पिता और पति के रूप में मेरी सोच
आज जब मैं अपनी पत्नी को थाली सजाते देखता हूँ, या किसी छोटी बच्ची को अपनी माँ की पूजा नकल करते देखता हूँ, तो लगता है — यह सिर्फ धार्मिक रस्म नहीं, बल्कि संस्कारों की विरासत है।
मैं सोचता हूँ, हमारे बच्चों को ऐसे त्योहारों से यही सीख मिलती है कि रिश्ते सिर्फ शब्दों से नहीं, कर्मों से निभाए जाते हैं।
और शायद यही करवा चौथ का असली संदेश है — धैर्य, प्रेम और विश्वास की ताकत।
समापन विचार
करवा चौथ का व्रत भले एक दिन का हो, लेकिन इसका असर पूरे जीवन में झलकता है।
हर साल यह त्यौहार हमें याद दिलाता है कि समर्पण और विश्वास किसी भी रिश्ते की असली नींव हैं।
“चाँद के निकलने का इंतज़ार हर बार नया होता है,
पर रिश्ता वही — पहले जैसा सच्चा और उजला।”
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