दो राहें, एक सफर – ज़िम्मेदारियों और जुनून के बीच का संतुलन Cool Blogger’s Diary

आज की सुबह कुछ अलग थी Cool Blogger’s Diary में।

ना आसमान कुछ ज़्यादा साफ़ था, ना चाय में कोई खास मिठास — फिर भी अंदर कुछ था जो बदल गया था। जैसा कि पहले बताया था, एक नई जॉब के अवसर का इंतज़ार था, और आज वो कॉल आ ही गई। यह वही क्षेत्र है जिसमें पिछले 20 वर्षों से काम करता आ रहा हूँ — स्कूल एजुकेशन। और अब, दो महीने बाद अपने ही शहर में सेटल होने के लिए इस नई शुरुआत को अपनाया है।

सुबह की शुरुआत अब सिर्फ चाय और ब्लॉग से नहीं, एक ज़िम्मेदारी के साथ हो रही है — नौकरी पर समय पर पहुँचना। लेकिन ब्लॉग तो जैसे अब मेरे साथ सांस लेता है। हर दिन मन में चलता रहता है कि क्या लिखूं, क्या शेयर करूं। अब कोशिश यही है कि दोनों को बैलेंस किया जाए — प्रोफेशन और पैशन।

एक काउंसलिंग का अनुभव

पिछले 15 वर्षों में बतौर स्कूल प्रिंसिपल कई अनुभवों से गुज़रा हूँ, कुछ किस्से तो अब डायरी का हिस्सा बनेंगे। एक काउंसलिंग से जुड़ा अनुभव आज बांटना चाहता हूँ।

Students Counselling

जब मैं काउंसलिंग कोर्स कर रहा था, तब सोचा कि स्कूल में बच्चों से भी इसी तरह संवाद किया जाए। क्लास 10 के छात्रों को, जो बोर्ड की तैयारी कर रहे थे, दो-दो करके बुलाना शुरू किया। उनसे सीधे और सरल सवाल पूछे — क्या कोई ऐसा मुद्दा है जो उन्हें पढ़ाई से भटका रहा है? क्या कोई ऐसा बोझ है जो वो किसी से कह नहीं पा रहे?

एक स्टूडेंट का केस दिल को छू गया। वह क्लास में हमेशा सेकंड पोज़िशन पर आता था, पर उसके घर का माहौल बहुत अशांत था। माता-पिता का रोज़ झगड़ा, चिल्लाहटें, तनाव — ये सब उसके पढ़ने-लिखने में रुकावट बन गए थे। वह और उसका छोटा भाई चुपचाप अपने कमरे में बैठ जाते थे, किताबें खुली रहती थीं, लेकिन दिमाग कहीं और होता था।

कितनी गहराई से बच्चों के मन पर असर डालता है घर का वातावरण — इस एक अनुभव ने ये और मजबूती से समझा दिया।

नई नौकरी, नया माहौल

नई नौकरी में ढेरों चुनौतियाँ हैं। हर स्कूल की अपनी संस्कृति होती है। पहले से चल रही व्यवस्थाओं को समझना, खुद के अनुभव से नई चीज़ें लाना और दोनों के बीच संतुलन बनाना — यही असली नेतृत्व है। एक नई नीति को तुरंत लागू करना या किसी पुरानी व्यवस्था को तुरंत खत्म कर देना नासमझी होगी। यहाँ कोऑर्डिनेशन ही असली चाबी है, और मुझे यह चुनौती स्वीकार है।

दिन ढलते ही फिर वही ब्लॉग की पुकार

घर लौटते ही फिर से ब्लॉगिंग के ख्याल दिमाग में घूमने लगे। दिन भर के व्यस्त शेड्यूल के बावजूद शाम को कुछ समय बैठकर एक नया आर्टिकल लिखा। CBSE द्वारा हाल ही में लागू किए गए “शुगर बोर्ड” के विषय पर एक ब्लॉग ड्राफ्ट किया — विचारों को शब्दों में ढालना मेरे लिए सुकून है।

रात की शांति और कल की तैयारी

दिन खत्म हुआ। थकान थी, लेकिन मन संतुष्ट था। आज भी एक कदम अपने सपनों की ओर बढ़ाया। समय पर सोने की कोशिश की — ताकि कल एक नई शुरुआत हो।


निष्कर्ष:
हर दिन कुछ खास नहीं होता, लेकिन हर दिन में कुछ खास ढूँढा जा सकता है। ज़िंदगी अगर रूटीन में भी चल रही है, तो भी उसमें कुछ ऐसा जरूर होता है जो लिखे जाने लायक है — बस हमें उसे देखना और महसूस करना आना चाहिए।

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